story

ऐसी ही एक कहानी है नीतीश बाबू की।

नितीश बाबू

        ये जो मोहब्बत है ना, ये सब कुछ नही होती हैं, इससे भी बड़ी होती है इनसानियत। जिसके खातिर कभी कभी इनसान को अपनी मोहब्बत के साथ भी समझौता करना पड़ता हैं…..

Alkaline water benefits
ऐसी ही एक कहानी है नीतीश बाबू की। बात उन दिनों की है जब बाल विवाह हुआ करता था।नितीश बाबू की भी बचपन में शादी कर दी गई थी।

       उनकी पत्नी का नाम गायत्री देवी था। दोनों की उम्र सात या आठ वर्ष रही होगी। बहुत मासूम थे दोनों बच्चे, उस वक्त तो वे शादी का मतलब भी नहीं समझते थे।

दोनों जने ही साथ में बच्चों वाले सारे खेल खेलते थे। दोनों के बीच एक सुन्दर सा रिश्ता जुड़ गया था और एक साल के बाद गायत्री देवी का गौना कर दिया गया। दोनों ही एक दूसरे को बहुत याद किया करते थे।
गौना एक रसम हुआ करती थी उन दिनों में। जिसमें लड़कियों को बाल विवाह के कुछ समय बाद गौना कर उनके पीहर भेजा जाता था और बालिग होने पर लड़की की विदाई की जाती थी।

अब गायत्री देवी भी अपने पीहर आ चुकी थीं।समय बड़ी ही तेजी से बीत रहा था। दोनों ही अब जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके थे।
.नीतीश बाबू एक आकर्षक नवयुवक के रूप में अपनी कालेज की पढ़ाई पूरी कर चुके थे और सरकारी नौकरी कर रहे थे।
गायत्री देवी भी अद्भुत सौंदर्य की मालकिन बन गई थी और घर गृहस्थी के कार्य में निपुण हो गई थी।
समय के साथ साथ दोनों के ही मन मे एक दूसरे के लिए मोहब्बत परवान चढ़ गई थी और एक दूसरे से मिलने के लिए दोनों बहुत ही बेचैन थे।
अब वो समय आ गया था कि गायत्री देवी की विदाई की जानी थी। गायत्री देवी के पिताजी गांव के एक बहुत रसूखदार जमीदार थे, उन्होंने अपने घर में अपनी बेटी की विदाई के मौके पर एक बहुत बड़ा जशन रखा था।

उधर नितीश बाबू के घर पर भी बहू के आगमन की तैयारी जोरों शोरों से हो रही थी।

        नीतीश बाबू के साथ में घर से बड़ें बड़े  सिर्फ पांच लोग जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक जगह अपनी गाड़ी रोकी, वहाँ उन्हे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। सब लोग गाड़ी से उतरे और जानने की कोशिश की कि आखिर माजरा क्या है?
एक महिला जिसका बेटा किसी कारणवश चोटिल हो गया था तो वह महिला अपने बेटे को लेकर वहीं रास्ते पर ही पड़ी हुई थी और गाड़ी को देखकर वह महिला नितीश बाबू के आगे हाथ जोड़कर कहती हैं कि वे उसके इकलौते बेटे को अस्पताल लेकर चले।

.साथ के सभी लोग उस औरत को समझाते हैं कि वे अपनी बहू को लाने जा रहे है  और अभी यह समभव नहीं हैं, किन्तु नितीश बाबू से उस औरत का दुख देखा न गया।

वे बोले, अगर इस वक्त इस लड़के को सही इलाज न मिला तो एक मां अपने घर के इकलौते चिराग को खो देगी। अतः वे उन दोनों को अपनी गाड़ी में लेकर अस्पताल चल दिए।

उधर गायत्री देवी के घर पर सभी दामाद जी की राह तक रहे थे। तभी नितीश बाबू ने किसी तरह वहाँ सारी खबर पहुंचा दी कि आज के तयशुदा समय मे  हम विदाई न करा पायेंगे, कृपया  हमें क्षमा कर दिजिये।

गायत्री देवी के पिताजी को जब ये बात पता चली तो उन्हें अपने दामाद पर बहुत गर्व महसूस हुआ। जिसने इनसानियत की खातिर अपने इतने खास दिन को भी कोई महत्व नहीं दिया और अगले दिन शुभ मुहूर्त में अपनी बेटी की विदाई खुशी से की।

धन्यवाद।

3 thoughts on “ऐसी ही एक कहानी है नीतीश बाबू की।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *